Saturday, July 5, 2014

मेरे कुछ अनसुलझे प्रश्न

कर्म बड़ा या मूर्ती पूजा?
क्या कोई निकम्मा व्यक्ति मूर्तिपूजा करे और उसकी मनोकामना पूरी होगी?
एक महेनती व्यक्ति मेहनत करके रोज़ी-रोटी कमाता है। दोनों में कौन अच्छा?

मेरे प्रश्न :

1) क्या शिर्डी के एक फ़कीर को जिस का नाम 'साईंबाबा' रखा गया है उसे भगवान् का दर्जा दिया जा सकता है?
2) क्या अयोध्या के राजा श्री रामचन्द्र भगवान् और द्वारिका के राजा श्री कृष्णचन्द्र भगवान् की मंदिरों में स्थापित मूर्तियों के पास में साईंबाबा की मूर्ती का रखा जाना उचित है?
3) क्या साईं बाबा की तुलना भगवान् से हो सकती है? यदि हाँ तो क्यों और कैसे? यदि नहीं तो आजकल ये अनर्थ कैसे?
4) शंकराचार्य का बयान कि 'साईंबाबा भगवान् नहीं है' कहाँ तक सही या ग़लत है?
5) साईं बाबा धार्मिक व्यक्ति थे या अधार्मिक और कैसे?
6) 'ऐश्वर्यस्य वीरस्य यशस्य श्रियः। ज्ञान  वैराग्य्योश्चैव षष्णां भग इतीरणा'।।(विष्णु पुराण 6/5/74) के अनुसार जिस व्यक्ति में ऐश्वर्य, बल, यश, श्री (धन, सम्पदा), ज्ञान और वैराग्य - ये छः गुण विद्यमान होते हैं उनको 'भगवान्' की उपाधि से सुशोभित किया जाता है।
श्री राम और श्री कृष्ण जैसे महापुरुषों को तो भगवान् कह सकते हैं परन्तु एक फ़कीर (भिखारी) को भगवान् कहना भगवान् शब्द का अपमान करना है।
7) जो व्यक्ति माँसाहारी था तथा ...... और मस्जिद में रहता था उस व्यक्ति की तस्वीर को  मंदिर में रखना और उसकी भगवान् की तरह पूजा करना कहाँ तक सही है? यह अज्ञानता की पराकाष्ठा नहीं है?
8) जिस व्यक्ति के मुँह से कभी 'राम' नहीं निकला उस व्यक्ति के नाम के साथ 'राम' का नाम जोड़ना (साईं राम) कहाँ की बुद्धिमात्ता है?
9) लोग निराकार ईश्वर के स्थान पर गढ़े मुर्दों/ मज़ारों/क़ब्रों की पूजा करते हैं अधार्मिक कार्य करते हैं। ये सब क्या हो रहा है?
10) कोई पंडित, आचार्य, गुरु, सद्गुरु, शंकराचार्य, साधू, संत, मौलाना, पादरी, ब्राह्मण या विद्वान् आदि धर्म के ठेकेदार हमें सही मर्ग्क्यों नहीं दिखाता? आपका अपना
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